१७ जुलाई, १९५७

 

         किसीको पाठमेसे कोई प्रश्न नही पूछना है?... आज मेरे पास तुमसे कहने- के लिये कुछ विशेष नही है, और यदि तुम्हें कोई उत्सुकता न हो कि शरीरकी नयी पूर्णताए क्या हों सकती हैं...

 

        मां, यहां प्रचलित शारीरिक शिक्षामें हमारा उद्देश्य है : ''शरीर- पर अधिकाधिक नियंत्रण पाना'', है न? और पिछली बार हमने जो पढा था उसमें श्रीअरविंदने कहा है कि हठयोग और तांत्रिक पद्धतियां शरीरपर बहुत बड़ा नियंत्रण प्रदान करती हैं' तो हम अपनी प्रणालीमें इन पद्धतियोंको शामिल क्यों नहीं करते?

 

          ' कोई चीज हमारे अंदर है अथवा कोई चीज विकसित करनी होगी, संभवत : अपनी सत्ताके किसी केंद्रीय और अभीतक गुह्य अंगको विकसित करना होगा जो शक्तियोंसे भरा है और उसकी शक्तियां जिस हदतक प्रकट हो सकती थीं उनके केवल एक अंश ही हमारे प्रकृत और वर्तमान गठनमे प्रकट हु है, पर यदि वे शक्ति यां पूरी त रह प्रकट एवं प्रभावशाली हो जायं तो वे आत्मा और अतिमानसिक सत्य-चेतनाकी ज्योति और शक्तिकी सहायतासे आवश्यक भौतिक रूपांतर साधित कर सकती एवं उसके फलोंको  सकती है । इस चीजको तत्र-विद्याद्वारा प्रकाशित एवं योग- पडतियोंद्वारा स्वीकृत चक्र-व्यवस्थामें पाया जा सकता है । ये चक्र हमारी सत्ताकी समस्त सक्रिय शक्तियोंके सचेतन केंद्र ओ र स्रोत हैं, विभिन्न ग्रन्थियों- द्वारा अपना कार्य करते है और ऊपर उठती हुई एक क्रम-परंपरामे व्यवस्थित है जो सबसे नीचेके भौतिक केंद्रसे प्रारंभ कर सबसे ऊपर मानस- केंद्र औ र आध्यात्मिक केंद्रतक जाती है । इस सर्वोच्च-केंद्रको ही सहस्र- दल कमल कहा जाता है, जहां आरोहण करती हुई प्रकृति, तांत्रिकोंकी ' कुंडलिनी शक्ति ', ब्रह्ममें जाकर मिल जाती औ र दिव्य सत्तामें मुक्त हो जा ती है । ये सब चक्र हमारे अंदर निमीलित या. अर्ध-निमीलित अवस्थामें है, इन्हें खोलना होगा ताकि इनका पूर्ण स  हमारी भौतिक प्रकृतिमें प्रकट हों सके : परंतु एक बार जब ये खुल जाते है तो इनकी क्षमताओंके वि कासकी औ र सर्वागी ण रूपांतरको संभव बनानेकी के ।ई सीमा सहज ही नहीं बांधी जा सकती.. । परंतु ये परिवर्त न भी भौतिक प्रक्रियाओंका

 

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ये शरीरपर क्रिया करनेकी गुह्य प्रक्रियाएं है (कम-से-कम तांत्रिक पद्धतियां), जब कि उन्नतिकी आधुनिक पद्धतियां सामान्य भौतिक प्रक्रियाओंका व्यवहार करती है, ताकि शरीर अपनी वर्तमान अवस्थामें जितनी पूर्णता प्राप्त कर सकता है, कर लें.. .मै तुम्हारा प्रश्न पूरी तरह पकडू नही पायी । ये प्रक्रियाएं पूर्णतया भिन्न है ।

 

         इन सब पद्धतियोंका आधार है वह शक्ति जो सचेतन संकल्पद्वारा जड़- तत्वपर प्रयुक्त की जाती है । साधारणत: यह एक ऐसी पद्धति है जिसका किसी व्यक्तिने काफी सफलताके साथ प्रयोग किया और इसे एक क्रिया- सिद्धान्तके तौरपर स्थिर कर औरोंको बताया और फिर उन्होंने भी इसे जारी रखा और पूर्ण बनाते गये, अंतमें इसने एक या दूसरे प्रकारकी काफी स्थिर शिक्षण-पद्धतिका रूप ले लिया । परन्तु इसका जो संपूर्ण आधार है वह है सचेतन संकल्पका शरीरपर प्रभाव । पद्धतिके सुनिश्चित रूपका बहुत अधिक महत्व नही है । देशों और कालोंके अनुसार किसी एक या दूसरी पद्धतिका प्रयोग किया जाता रहा है, पर इसके पीछे जो चीज है वह है एक निश्चित धारामें विधिवत् कार्य करती हुई मानसिक शक्ति । स्वभावतः, कुछ पद्धतियां उच्चतर शक्तिको प्रयोगमें लानेका प्रयत्न करती हैं जो धीरे-धीरे अपनी क्षमता मानसिक शक्तिमें उंडेल देती हैं. जब उच्च कोटिकी कोई शक्ति मानसिक पद्धतिमें उडेली जाती है तो स्वभावत: वह अधिक प्रभावकारी और सक्षम बन जाती है । पर प्रधानत: ये सब शिक्षण- पद्धतियां सबसे अधिक उस व्यक्तिपर निर्भर हैं जो इनका व्यवहार करता है और उस ढगपर जिसे वह प्रयोगमें लाता है । वह शिक्षणके इस सर्वथा बाह्य आधारका अत्यधिक भौतिक व सामान्य प्रक्रियाओमें भी उच्च कोटिकी शक्तियोंको भरनेके लिये उपयोग कर सकता है । तो, सब पद्धतियां, वें चाहे जो मी हों, लगभग पूरी तरह उस व्यक्तिपर निर्भर हैं जो उनका उपयोग करता है और इस बातपर कि वह उनमें क्या भरता है ।

 

कुछ ऐसा अवशेष छोड़ देंगे जो पुराने रास्ते चलता रहेगा और उच्चतर नियंत्रणके वशवर्ती नहीं होगा । यदि इसे परिवर्तित न किया जा सका तो बाकी रूपांतर भी स्वयं रुक सकता या अपूर्ण रह सकता है । शरीरका संपूर्ण रूपांतर इस बातकी अपेक्षा रखता है कि इसका जो अत्यधिक भौतिक मांग है उसका, उसकी रचना, प्रक्रिया एवं स्वभावके गठनका, पर्याप्त परि- वर्तन हो जाय ।

 

(अतिमानसिक' अभिव्यक्ति)

 

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        लेकिन देखा, यदि इस प्रश्नको अत्यंत आधुनिक और अत्यंत बाह्य रूपमें लें, कि ऐसा कैसे होता है कि जो क्रियाएं हम अपने प्रति दिनके जीवनमें, प्रायः सदा ही, करते है या जो हमें अपने काममें, यदि वह स्थूल भौतिक काम हो तो, करनी. पड़ती है वे हमारी मांसपेशियोंको विकसित करने एवं शरीरमें समस्वरता लानेमें कोई सहायता नहीं करतीं या बहुत थोडी-सी, न के बराबर ही करती' है, जब कि दूसरी ओर ठीक वे ही क्रियाएं यदि सचेतनताके साथ, स्वेच्छापूर्वक, विशिष्ट उद्देश्यको सामने रखकर की जायं नो एकाएक हमारी पेशियों और शरीरके निर्माणमें सहायता करती है । यह कैसे होता है? उदाहरणार्थ, कुछ ऐसे काम है जिनमें लोगोंको अत्यधिक भारी बोझ, जैसे सीमेंट या अनाज या कोयलेके बोरे, ढोने होते है; वे बहुत परिश्रम करते है और इसे एक हदतक उपार्जित सहजताके साथ कर लेते है, हार उससे उन्हें शरीरकी समस्वरताकी प्राप्ति नहीं होती क्योंकि वे इसे अपनी पेशियोंका- विकसित करनेकी भावनाके साथ नहीं करते, वे इसे, बस, ' 'यों ही'' करते रहते है । पर जो व्यक्ति किसी एक पद्धतिका, वह चाहे सीखती हुई हो अथवा अपनी बनायी हुई, अनुसरण करता है और बिल्कुल?  इन्हीं क्रियाओंको इस या उस पेशीको उन्नत करनेके और अपने शरीरमें सामान्य समस्वरता लानेके संकल्पके साथ करता है -- वह सफल होता है । परिणामस्वरूप, हम कह सकते है कि सचेतन संकल्पमें कुछ ऐसी चीज- है जो स्वयं कियाके अंदर बहुत कुछ जोड़ देती है । जो लोग सचमुच शारीरिक शिक्षणका -- जैसा कि इसे अब समझा जाता है -- अभ्यास करना चाहते हे वे जो कुछ करते है सब सचेतनताके साथ करते है । वे मीढीमे नीचे उतरनें है सचेतन भावमें, वे साधारण जीवनकी क्रियाओंको करते है सचेतन भावमें, न कि यंत्रवत् । एक सजग दृष्टिको शायद इनमें कुछ फर्क मालूम दें पर सबसे बड़ा फर्क होता है उस संकल्पका, उस चेतना- का जो उसमें डटात्ठी- जाती है । कही जानेके लिये चप्रना और व्यायामके तौरपर चलना, यह एक ही तरहका चलना नहीं है । तो, यह सचेतन संकल्प ही है जो इन सब चीजोंमें महत्त्वकी वस्तु है, यही उन्नति साधित करता और उत्प्रास'ना करता है । अतः मे२ए: कहनेका अभिप्राय यह ' है कि प्रयुक्त पद्धतिका अपने-आपमें केव सापेक्षिक महत्व है, किसी विशिष्ट परिणामको सिद्ध करनेका संकल्प ही असलमें महत्त्वपूर्ण वस्तु है ।

 

        एक योगी या माधक आसनोंको आध्यात्मिक परिणाम या केवल अपने शरीरपर ही नियंत्रण पानेके लिये करता है- और वह इन परिणामोंको पास्वेत। है, क्योंकि वह इसी उद्देश्यके साथ उन्हें करता है, जब कि मैं ऐसे लोगोंको जानती हू जो बिलकुल ये ही चीजों करते है पर ऐसे कारणोंसे

 

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जिनका आध्यात्मिकतासे कोई संबंध नहीं और वे उनसे उत्तम स्वास्थ्यतक नहीं पा सके! पर फिर भी वें करते है ठीक ये ही चीजों और प्रायः इन्हें योगीसे मी अधिक अच्छी तरह करते हैं, पर इससे उन्हें स्थायी ।स्वास्थ्यकी प्राप्ति नहीं हुई... क्योंकि उन्होंने इस विचारके साथ, इस लक्ष्यको मनमें रखकर आसन नहीं किये थे । मैंने उनसे पूछा, ''भला, यह कैसी बात कि यह सब करते हुए भी तुम बीमार हों? '' -- ''ओह! इस बारेमें तो मैंने कमी सोचा ही नहीं, मैं जो आसन करता हूं वह इसलिये नहीं करता ।', यह चीज इस कथनकी पुष्टि करती है कि सचेतन संकल्प ही जडपर क्रिया करता है, स्थूल कर्म नहीं ।

 

           परन्तु तुम जरा प्रयोग करके देख लो, और तब तुम अच्छी तरह समझ जाओगे कि मेरा मतलब क्या है । उदाहरणार्थ, अपनी क्रियाओंको, कपड़े पहनने, नहाने, कमरा साफ करने.. आदिकी जो भी क्रियाएं है सबको सचेतन भावसे करो, इस संकल्पके साथ करो कि अब यह पेशी काम करेगी, अब वह पेशी काम करेगी, तब तुम उसका फल देखोगे, तुम बहुत ही आश्चर्यकर परिणाम प्राप्त करोगे ।

 

          सीढ़ियोंपर चढ़ना और उतरना -- तुम कल्पना नहीं कर सकते कि यह चीज शारीरिक शिक्षाकी दृष्टिसे कितनी अधिक उपयोगी हों सकती है, यदि तुम जानते हो कि इसका उपपोग कैसे किया जाता है । एक साधारण आदमीकी तरह इसलिये ऊपर जाना क्योंकि तुम ऊपर जा रहे हो और इसलिये नीचे उतरना क्योंकि तुम नीचे आ रहे हों, इसके स्थानपर यदि तुम काम करनेवाली सब पेशियोंसे सचेतन रहते हुए और इसका ख्याल रखते हुए कि वे समस्वरतामें कार्य करें ऊपर जाओ तो तुम उसका फल देखोगे । जरा कोशिश कर देखो! कहनेका मतलब यह कि जीवनकी सभी गतियोंको तुम अपने शरीरके समस्वर विकासके लिये उपयोगमें ला सकते हों ।

 

        तुम किसी चीजको उठानेके लिये झुकते हो, अलमारीके एकदम ऊपर पडी किसी चीजको खोजनेके लिये उचकते हो, दरवाजा खोलते हों, उसे बंद करते हो, रुकावटको देखनेके लिपे चारों ओर मुड़ते हो, ऐसी सैकड़ों चीजों है जिन्हें तुम निरन्तर करते हो और जिनका तुम अपने शारीरिक शिक्षणमें उपयोग कर सकते हों और वे तुम्हें सिद्ध कर दिखायेंगी कि क्रियाओंके अंदर रखी गयी चेतनाका ही प्रभाव होता है, ऐसे ही किये जानेवाले भौतिक कर्मकी अपेक्षा सौगुना अधिक प्रभाव होता है । तो, जो भी पद्धति तुम्हें पसन्द हो तुम उसे चून सकते हों, पर तुम दिन-भरके अपने सारे जीवनको ही इस तरहसे उपयोगमें ला सकते हों... । निरंतर शरीरकी समस्वरताके बारेमें और

 

गतियोंके सौंदर्यके बारेमें सोचो, ऐसी कोई चेष्टा न करो जो सुललित न हों, जो शोभन न जान पड़ती हो । तब तुम गतियों और भाव-भगिमाका एक असाधारण छन्द पा जाओगे ।

 

       हम अब इस सबपर ध्यान करेंगे ।

 

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